मैं अक्सर सोचता हूँ इन रातों में
क्या आते हैं लोग जाने क लिए ?
तकदीर को आज़माने के लिए
या शायद
ज़िन्दगी में कोई रूठी हुई वजह को मनाने के लिए
मकसद होता है क्या हर बात के पीछे ?
क्या हँसीं भी आती है मुझे मुरझाने के लिए ?
खुद ही खुद में सिमट के रातों में अपने आप में छुप जाने के लिए,
मैं तो पाता हूँ अकसर अपनी सोच में भी खुद को तनहा
जब की दूसरों के लिए तो कईं होते हैं
अंधेरों को उनके रोशनी से भर जाने के लिए ,
मैं सोचता हूँ ज्यादा ?
या उदासी एक इत्तेफ़ाक़ है?
मेरी नहीं अकेले की,
शायद हर किसी की दबी आवाज़ है ।
मेरी खामोशियाँ मुझसे बातें करती हैं
चीखकर मुझपे मुझमें ज़िन्दगी भरने को मरती हैं ,
पर साँसों में कुछ अजीब सी नमी है
जैसे अमावस्या की रातों में चांदनी की कमी है।
प्यारा एहसास कोई हो अगर
वो रह-रह महसूस होता है ,
जैसे ही उसे छूना शुरू करदूँ
मेरे हाथों से रेत सा बहता है ।
आख़िर हर लम्हा ज़िन्दगी का मुझसे क्या कहता है?
ये सोचता हूँ जब मैं रातों में
इन धीमी सी बरसातों में,
क्या पानी ही हैं ये बूँदें?
या हैं कोई इशारा?
उपरवाले का आख़िर है पहेली सा खेल सारा
फँस चुका हूँ जिसमें अब बुरी तरह मैं बेचारा ||
-भव्या गोयल
क्या आते हैं लोग जाने क लिए ?
तकदीर को आज़माने के लिए
या शायद
ज़िन्दगी में कोई रूठी हुई वजह को मनाने के लिए
मकसद होता है क्या हर बात के पीछे ?
क्या हँसीं भी आती है मुझे मुरझाने के लिए ?
खुद ही खुद में सिमट के रातों में अपने आप में छुप जाने के लिए,
मैं तो पाता हूँ अकसर अपनी सोच में भी खुद को तनहा
जब की दूसरों के लिए तो कईं होते हैं
अंधेरों को उनके रोशनी से भर जाने के लिए ,
मैं सोचता हूँ ज्यादा ?
या उदासी एक इत्तेफ़ाक़ है?
मेरी नहीं अकेले की,
शायद हर किसी की दबी आवाज़ है ।
मेरी खामोशियाँ मुझसे बातें करती हैं
चीखकर मुझपे मुझमें ज़िन्दगी भरने को मरती हैं ,
पर साँसों में कुछ अजीब सी नमी है
जैसे अमावस्या की रातों में चांदनी की कमी है।
प्यारा एहसास कोई हो अगर
वो रह-रह महसूस होता है ,
जैसे ही उसे छूना शुरू करदूँ
मेरे हाथों से रेत सा बहता है ।
आख़िर हर लम्हा ज़िन्दगी का मुझसे क्या कहता है?
ये सोचता हूँ जब मैं रातों में
इन धीमी सी बरसातों में,
क्या पानी ही हैं ये बूँदें?
या हैं कोई इशारा?
उपरवाले का आख़िर है पहेली सा खेल सारा
फँस चुका हूँ जिसमें अब बुरी तरह मैं बेचारा ||
-भव्या गोयल